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Sunday 16 October 2022

Police Commemoration Day - पुलिस स्मृति दिवस 21/10/2022 Images

Police Commemoration Day - पुलिस स्मृति दिवस 21/10/2022 Free Images Download 


Police Commemoration Day is observed on October 21 in India. It is a national holiday to pay tribute to the martyrs who have sacrificed their lives in the line of duty. It is also a day to express gratitude to the officers and the families of those who continue to serve and protect us every day.


HISTORY OF POLICE COMMEMORATION DAY

Due to incidents during 1958 and 1959, the relationship between India and China was changing. There were political and geographical issues that escalated, creating turmoil between the countries. On October 21, 1959, it is believed that China initiated its first attack on India in the Aksai Chin region. The People’s Liberation Army allegedly attacked the Intelligence Bureau and Central Reserve Police Force (C.R.P.F), killing 10 men and taking seven as prisoners.


As per official accounts from the time, three reconnaissance parties were launched from Ladakh the day before, as part of an Indian expedition to Lanak La. However, only two of these parties returned. The following morning, a party of 20 personnel consisting of people from the Intelligence Bureau and C.R.P.F. was led by D.C.I.O Shri Karam Singh to search for the missing party. They moved on horseback while all other personnel followed on foot. Around midday, the Chinese army opened fire and threw grenades at Singh’s party, which was without cover. The attack led to the death of 10, the capturing of seven and injuries to the remaining men who fortunately managed to escape.


It was only after a full three weeks that the Chinese handed over the bodies of the martyrs to the nation. They were then cremated with proper police honors in the Hot Springs in Ladakh. Along with widespread rage that swept the country, there was also overwhelming gratitude for the brave soldiers who had fought until the end. At the annual Conference of Inspectors General of Police of States and Union Territories in January 1960, October 21 was declared as ‘Commemoration Day’.


भारत में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस (Police Commemoration Day) मनाया जाता है। यह दिन उन बहादुर पुलिसकर्मियों को याद करने और सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने कर्तव्य की पंक्ति में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। पुलिस स्मृति दिवस 1959 में उस दिन की याद दिलाता है, जब लद्दाख के हॉट स्प्रिंग क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा बीस भारतीय सैनिकों पर हमला किया गया था, जिसमें दस भारतीय पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी और सात कैद हो गए थे। उस दिन से, शहीदों के सम्मान में 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।


प्रतिवर्ष 21 अक्टूबर को पुलिस बल के शौर्य और सर्वोच्च बलिदान को स्मरण करने हेतु ‘पुलिस स्मृति दिवस’ (National Police Day) मनाया जाता है। आपको बता दे 1960 से ‘पुलिस स्मृति दिवस’ को मनाने की शुरुआत 21 अक्टूबर 1959 को उन 10 पुलिसकर्मियों के सर्वोच्च बलिदान की स्मृति में की गई जिन्होंने उत्तरी-पूर्वी लद्दाख में चीन से लगने वाली ‘हॉट स्प्रिंग’ क्षेत्र में भारतीय सीमा की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।


भारत में पुलिसिंग व्यवस्था का एक लंबा इतिहास रहा है। चुकी आम जनता को भारतीय पुलिसिंग व्यवस्था के सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक राज्य पुलिसिंग व्यवस्था से सर्वाधिक परिचित है इसलिए आज के लेख में हम पुलिसिंग व्यवस्था के इस स्वरूप पर प्रकाश डालेंगे।


परिचय

वर्तमान में जब पूरे विश्व समेत भारत एक स्वास्थ्य आपातकाल से गुजर रहा है तो वहां अपनी सजगता एवं सहायता से पुलिस का मानवीय चेहरा सामने आया है एवं जनता और पुलिस के मध्य सकारात्मक संबंध स्थापित हुए हैं तो वही वहीं दूसरी ओर विकास दुबे प्रकरण, हैदराबाद पुलिस एनकाउंटर, CAA विरोध प्रदर्शनों एवं दिल्ली में दंगों समेत कोविड-19 के दौरान पूरे भारत में प्रवासियों को संभालने के और असंवेदनशील रवैये के लिए भी पुलिस लगातार सुर्खियों में बनी रही।


वस्तुतः भारतीय पुलिसिंग व्यवस्था में पुलिस के असंवेदनशील रवैये, ग़ैरकानूनी गिरफ्तारी, अपर्याप्त संसान और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसे कुछ चुनौतियाँ पुलिस व्यवस्था की निष्पक्षता और कार्यकुशलता पर सवाल खड़े करते हैं।


भारतीय में पुलिस व्यवस्था:

भारत में ब्रिटिश सरकार के दौरान 1860 में बने पहले पुलिस कमीशन के आधार पर राज्य पुलिस व्यवस्था का निर्माण किया गया है। जिसके अंतर्गत पुलिस के गठन का स्वरुप, कार्यभार और जिम्मेदारियों का ज़िक्र किया गया है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 246 और IPC की धारा-3 के तहत पुलिस राज्य का विषय है, जिसके अनुसार लगभग सभी राज्यों की अपनी पुलिस व्यवस्था है।


सामान्यतः राज्य पुलिस बलों की दो शाखाएं होती हैं: सिविल और सशस्त्र पुलिस। जहाँ सिविल पुलिस रोजमर्रा के कानून और व्यवस्था को बहाल करने समेत अपराध को काबू करने के लिए जिम्मेदार होती है तो वहीँ सशस्त्र पुलिस को रिजर्व में रखा जाता है, जब तक कि दंगे जैसी स्थितियों में सिविल पुलिस को अतिरिक्त सहयोग की जरूरत न हो।


कानून और व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित करने में राज्यों की सहायता हेतु केंद्र को भी पुलिस बलों के रखरखाव की अनुमति दी गई है। इसलिए केंद्र के अधीन कुछ विशेष कार्यों (खुफिया सूचनाएं एकत्र करना, जांच, अनुसंधान एवं रिकॉर्ड कीपिंग, और प्रशिक्षण) के लिए सात केंद्रीय पुलिस बलों समेत कुछ अन्य पुलिस संगठनों की स्थापना की गयी है।


केंद्र के प्रमुख पुलिस बल निम्न है-(i) केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (ii) केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (iii) राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (iv) चार सीमा सुरक्षा बल, जो कि सीमा सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल और असम राइफल्स


केंद्र के अंतर्गत कुछ अन्य पुलिस संगठन में खुफिया ब्यूरो (आईबी) और दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेंट एक्ट, 1946 के तहत गठित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) शामिल है। उल्लेखनीय है कि सीबीआई ऐसे गंभीर अपराधों की जांच के लिए जिम्मेदार है जिसका असर पूरे भारत पर या अंतर-राज्यीय होता है।


जहाँ राज्य पुलिस पर कानून एवं व्यवस्था तथा अपराधों की जांच करने की जिम्मेदारी होती है तो वही केंद्रीय बल खुफिया और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े विषयों (जैसे उग्रवाद) में राज्य पुलिस को सहायता प्रदान करते हैं।


भारत में पुलिसिंग व्यवस्था की चुनौतियां:

पुलिस कार्यपालिका का हिस्सा के बावजूद राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त नहीं है जिसके कारण पुलिस बल का राजनीतिकरण हुआ है। इसके साथ सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा अनुचित लाभ उठाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।


भारत में पुलिसिंग व्यवस्था की आंतरिक प्रबंधन प्रणाली स्वतंत्र,पारदर्शी और पर्याप्त नहीं है।


पुलिस को मुख्य कार्यों से इतर अन्य कार्यों में शामिल किए जाने से पुलिस की दक्षता का प्रभावित होना।


सार्वजनिक शिकायतों को ठीक से संबोधित नहीं किया जाना उदाहरण के लिए समाज में घट रहे अपराधों की तुलना में न्यूनतम एफआईआर को दर्ज किया जाना।


पुलिस की जवाबदेही एक प्रमुख मुद्दा है, विशेष रूप से फर्जी मुठभेड़ों, हिरासत में हुई मौतों के संबंध में।


पुलिस में जांच मानकों की गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही है, इसके साथ ही पुलिस द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले हथियारों एवं उपकरणों की कमी एक प्रमुख समस्या है।


आंतरिक विभागों के बीच पर्याप्त समन्वय का अभाव से जांच प्रक्रिया में देरी।


प्रशिक्षण मानक अपर्याप्त है एवं यह आधुनिक तकनीक के उपयोग को ध्यान में नहीं रखते हैं।


पुलिस पर अत्यधिक वर्कलोड/कार्यभार भारतीय पुलिसिंग व्यवस्था की अक्षमता का एक बड़ा कारण है।


भारतीय पुलिसिंग से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

जनवरी 2016 में राज्य पुलिस बलों में लगभग 24% रिक्तियां थीं। वर्ष 2016 में प्रति एक लाख व्यक्ति पर स्वीकृत पुलिस संख्या 181 की तुलना में उनकी वास्तविक संख्या 137 थी जबकि संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार यह 222 पुलिसकर्मी होनी चाहिए।


कैग द्वारा किए गए ऑडिट से पता चलता है कि राज्य पुलिस बलों में हथियारों की कमी पाई गई है उदाहरण के लिए राजस्थान और पश्चिम बंगाल के पुलिस बलों में अपेक्षित हथियारों में क्रमशः 75% और 71% की कमी है।


ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के अनुसार राज्य पुलिस बलों के अपेक्षित वाहनों (2,35,339 वाहनों) के स्टॉक में 30.5% स्टॉक का अभाव है।


पिछले दशक (2005-2015) में प्रति एक लाख जनसंख्या पर अपराध दर में 28% की वृद्धि हुई जबकि 2015 में भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत पंजीकृत 47% मामलों में अपराध साबित हुए थे।


देश में लॉ एंड ऑर्डर के साथ स्थिरता सुनिश्चित करने ने अपने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद केंद्र और राज्य सरकार के बजट 3% हिस्सा पुलिस पर खर्च होता है।


सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, गरीब, निम्न तबके के लोग, अल्पसंख्यक और महिलाएं पुलिस से भयभीत रहतीं हैं और पुलिस से जुड़ाव महसूस नहीं करती हैं। अध्ययन में शामिल आधे से अधिक लोगों का मानना है कि पुलिस गरीबों की तुलना में अमीरों के साथ बेहतर व्यवहार करती है, जो यह दर्शाता है कि गरीब और निम्न तबके के लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है।


भारत में पुलिसिंग व्यवस्था में सुधार हेतु प्रयास

पुलिस सुधार के लिए 1977 से 1981 के बीच राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन किया गया था । इस आयोग ने पुलिस को अधिक जबाबदेह बनाने और अधिक कार्यकारी शक्तियां प्रदान करने जैसी कई महत्त्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तुत की थी ‌। जिसे पूर्ण रूप से अभी तक लागू नहीं किया जा सका है ‌|


राष्ट्रीय पुलिस आयोग के बाद कई और समितियों और कमेटियों का पुलिस सुधार के लिए निर्माण हुआ जिनमें 1998 में रिबेरो कमेटी, 2000 में पद्मनभैया कमेटी, 2003 में मलिमथ कमेटी, और 2005 में पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की अध्यक्षता में मॉडल पुलिस एक्ट ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया गया ।


इन सभी आयोगों और कमेटियों ने सामान्य रूप से इस बात पर सहमति जताई कि पुलिस की संरचना में खासतौर से बड़ी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में बुनियादी बदलाव की जरूरत है ।


1996 में दायर पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की जनतहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था । जिसमें पुलिस का मूल्यांकन करने, उनकी तैनाती तथा तबादला करने और पुलिस के व्यव्हार की शिकायतें दर्ज करने जैसे 7 महत्त्वपूर्ण आदेश दिए गए थे।


साल में 2006 में सोली सोराबजी की अध्यक्षता में एक और कमेटी का गठन किया गया । जिसका उद्देश्य 1861 के पुलिस एक्ट को हटा कर नया ‘मॉडल पुलिस एक्ट’ प्रस्तावित किया था। इस नए एक्ट के तहत जिला और राज्य स्तर पर शिकायतों के निपटारे के लिए अथारिटीज़ बनी और पुलिसकर्मियों के ड्यूटी भी 8घंटे निर्धारित करने की बात कही गई । जिसे बाद में देश के कुल 17 राज्यों ने 1861 के पुलिस एक्ट को छोड़कर नए पुलिस रेगुलेशन बनाये ।


भारत में पुलिस व्यवस्था में में सुधार हेतु सुझाव

क्षमता एवं अवसंरचना निर्माण: पुलिस बलों के अवसंरचना ढांचे और क्षमता को बढ़ाने के लिए देश में पुलिस कर्मियों की संख्या में वृद्धि, हथियारों एवं उपकरणों की समुचित आपूर्ति के भर्ती प्रणाली, प्रशिक्षण और सेवा शर्तों में सुधार किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पुलिस के द्वारा किये जा रहे कार्य के घंटे समेत आवास सुविधाओं को आकर्षक बनाया जाए।


वैधानिक सुधार: पुलिस से जुड़े वैधानिक सुधारो को यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए जिसमें शामिल है- एकल पुलिस अधिनियम, पुलिस को समवर्ती सूची में लाना, संघीय अपराधों की घोषणा, अपराधों के पंजीकरण से संबंधित उपाय, सीबीआई को पर्याप्त वैधानिक समर्थन, बड़े क्षेत्रों के लिए कमिश्नरी व्यवस्था, बीट कांस्टेबल प्रणाली का पुनरुद्धार और सुदृढ़ीकरण और आपराधिक प्रक्रिया और साक्ष्य प्रणालियों में वांछित परिवर्तन।


प्रशासनिक सुधार: वैधानिक सुधारों के साथ-साथ प्रशासनिक सुधारों को भी यथाशीघ्र अपनाया जाना चाहिए जिस में शामिल है- पुलिस जांच व्यवस्था को लॉ एंड ऑर्डर से पृथक करना, सामाजिक और साइबर अपराधों के लिए विशेष विंग, पुलिस को मुख्यत: पुलिसिंग से जुड़े कार्य तक ही सीमित रखना, सर्वोच्च न्यायलय द्वारा निर्देशित संस्थानों/ निकायों की स्थापना, राज्य मशीनरी को मजबूत करना और अभियोजन पक्ष को पुलिस के साथ जोड़ा जाना।


तकनीकी उन्नयन: आधुनिक नवीनतम प्रौद्योगिकियों एवं तकनीकी सुधारों को अपनाया जाना चाहिए जिसमें शामिल है- पुलिस नियंत्रण कक्ष का आधुनिकीकरण, क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (सीसीटीएनएस) पर पैनी नजर के साथ-साथ नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) के समुचित उपयोग को सुनिश्चित करते हुए सूचना और प्रौद्योगिकी की नई तकनीक को पुलिसिंग में शामिल करना।


वित्त में बढ़ोतरी: राज्यों को पुलिस व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए पुलिसिंग व्यवस्था के लिए दिए जा रहे वित्त को बढ़ाया जाना चाहिए जिससे पुलिस बल को क्षमता एवं अवसंरचना निर्माण हेतु आवश्यक संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित हो।


सामुदायिक/ कम्युनिटी पुलिसिंगः जनता-पुलिस अविश्वास को कम करने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल को अपनाया जाए जिसमें बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ सक्रिय परामर्श, सहयोग और साझेदारी से की जाने वाली पुलिसिंग व्यवस्था को लोकप्रिय बनाया जा सके। कुछ राज्यों में विद्यमान सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल (केरल में जनमैत्री,गुवाहाटी में मीरा पायबी/मशाल-वाहक,राजस्थान में 'संयुक्त पैट्रोलिंग समितिया,तमिलनाडु में, 'फ्रेंड्स ऑफ पुलिस', पश्चिम बंगाल में 'कम्युनिटी पुलिसिंग प्रोजेक्ट', आंध्र प्रदेश में 'मैत्री' और महाराष्ट्र में मोहल्ला समितिया) की तर्ज पर अन्य राज्यों में भी कम्युनिटी पुलिसिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 




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