राजस्थान का एक ऐसा रहस्यमय मंदिर जहां शिव से पहले होती है रावण की पूजा - Hp Video Status

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Wednesday 1 April 2020

राजस्थान का एक ऐसा रहस्यमय मंदिर जहां शिव से पहले होती है रावण की पूजा



उदयपुर: झीलों की नगरी उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर झाड़ोल तहसील में आवरगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का एक प्राचीन मंदिर स्थित है जो की कमलनाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है क्योंकि मान्यता है कि शिव से पहले यदि रावण की पूजा नहीं की जाए तो सारी पूजा व्यर्थ जाती है, इसीलिए मंदिर में ही एक और रावण की मूर्ति स्थापित है वहीं दूसरी और शिवलिंग है.

यह है पौराणिक कथा:
एक बार लंकापति रावण भगवान शंकर की पूजा कर रहा था, रावण एक बार में भगवान शिव को एक सौ आठ कमल के पुष्प चढ़ाता था, एक दिन जब पूजा करते वक़्त एक पुष्प कम पड़ा तो रावण ने अपना एक शीश काटकर भगवान शिव को समर्पित कर दिया. भगवान शिव रावण से प्रसन्न हुए और वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी और दस शीश का वरदान दे दिया, साथ ही इस स्थान को कमलनाथ महादेव नाम दे दिया.

महाराणा प्रताप ने भी बिताया था समय:
किवंदिती के अनुसार इसी जगह पर भगवान राम ने भी अपने वनवास का कुछ समय बिताया था. महाराणा प्रताप ने भी आपातकाल में कुछ समय यहां बिताया था, जब मुग़ल शासक अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब आवरगढ़ की पहाड़ियां  ही चित्तौड़ की सेनाओं के लिए सुरक्षित स्थान था.  सन् 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य हल्दी घाटी का संग्राम हुआ था, हल्दी घाटी के समर में घायल सैनिकों को आवरगढ़ की पहाड़ियों में उपचार के लिए लाया जाता था. हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात झाडौल जागीर में स्थित आवरगढ़ की पहाड़ी पर सन् 1577  में  महाराणा प्रताप ने होली जलाई थी. उसी समय से समस्त झाडोल में सर्वप्रथम इसी जगह होलिका दहन होता है. आज भी प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप के अनुयायी झाडोल के लोग होली के अवसर पर पहाड़ी पर एकत्र होते है जहाँ कमलनाथ महादेव मंदिर के पुजारी होलिका दहन करते है. इसके बाद ही पूरे झाडोल क्षेत्र में होलिका दहन किया जाता है. 

प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है:
पहाड़ियों के बीच स्तिथ कमलनाथ महादेव मंदिर तक जाने के लिए नीचे स्तिथ शनि महाराज के मंदिर तक साधन जा सकते है परन्तु इससे आगे का दो किलोमीटर का सफर पैदल ही पूरा करना पड़ता है. पहाड़ियों से घिरे होने की वजह से यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है. इस चमत्कारी मंदिर पर हर वर्ष सावन व वैशाख माह में भक्तों की भीड़ रहती है, दूर दूर से आने वाले भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर महादेव को चूरमे का भोग लगा कर प्रसादी का आयोजन करते है.

आदिवासियों का हरिद्वार:
मंदिर परिसर में ही एक कुंड बना हुआ है जहाँ पर जमीन के अंदर से पानी की एक धार निकलती है जो पूरे वर्ष बहती रहती है, इसे आदिवासियों का हरिद्वार भी कहा जाता है क्यो की आस पास के आदिवासी अपने परिवार जनों की मृत्यु के बाद इसी कुण्ड में अस्थि विसर्जन कर अंतिम क्रिया करते है. वही प्रसादी का आयोजन किया जाता है. 


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