माता सीता ने दिया था इन चार जातियों को श्राप, अबतक भुगत रहे परिणाम नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे वेबसाइट पे, हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष के महीने को पाक एवं पवित्र माना जाता है, इस महीने के आप को कई सारी अद्भुत कहानियाँ भी सुनने जो जरूर मिलती होंगी, तो ऐसे में कुछ कहानियाँ ऎसी भी है जिनका संबंद रामायण काल से सुनी और सुनाई जा रही हैं ये कहानी आप को थोड़ी अजीब लग सकती हैं, शयद आप को विस्वास ना हो लेकिन ये बिलकुल सच्ची कहानी हैं की हमारे इस धरती पर 5 महत्पूर्ण वस्तुएँ उसी समय से है जब श्री राम चंद्र जी अपनी पत्नी और अपने भाई लछ्मण के साथ वनवास में अपने पीता की आज्ञा का पालन करते हुए अपने जीवन को व्यतीत कर रहे थे,
उसी समय प्रभु श्री राम को इस बात की सूचना मिली की उनकर पिता यानी महराज दशरथ की देहांत हो गयीI अगर श्री राम चाहते तो वो अपने पिता की अंतिम दर्सन के लिए जा सकते थेI लेकिन श्री राम ने अपने पिता के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए ना जाने का फैसला कियाI ये खबर मिलते ही माता सीता ने लछ्मण से अनुग्रह करते हुए कहा, वो वन में जाए और पिंडदान करने के लिए आवश्यक वस्तुएँ ले आयेI लछ्मण भी सीता माता के आज्ञा को मानते हुए वन की और चले गएI लेकिन लछ्मण के आने में देरी को देख कर सीता माता ने खुद ही पिंडदान की सामग्रियों का प्रबंध किया, और राजा दसरथ का पिंड दान किया,
जिसके ग़वाह पंडित, कोवा, एक गाय, और फल्गु नदी बनेI जब प्रभू राम लोटे तो माता सीता ने कहा में पिता श्री का पिंडदान कर दिया है जिसके ग़वाह ये चारों है, जब राम जी उनसे पूछा तो उन चारो ने इस बात का नाकार दियाI इससे माता सीता बहुत सॉकिट हुई और तुरंत ही राजा दसरथ के आत्मा को आने का आग्रह किया, और ततछन उनकी आत्मा उस जगह पर आ गयी, उन्होंने बताया,
पुत्री सीता ने उनका पिंडांदान कर दिया है और ये चारो झूट बोल रहे हैंI उनके झूट बोलने से माँ सीता बहुत क्रोधित हुई, और उन्होंने पंडित को श्राप देते हुए कहा तुम जितना भी खालो तुम्हे कितना भी धन मिल जाए, तुम हमेश दरिद्र ही रहोगेI वही फल्गु नदी को भी सुखा रहने का श्राप मिलाI गौ माता को पूजे जाने के बाद भी दर दर के टोखर खाते हुए झुटन खायोगेI कोवा को अकेला खाने से हमेशा भूखा तथा लर-झगड़ के काने पर ही पेट भरने का श्राप मिलाI जिसकी झलक भी देखने को मिलती हैंI
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